कुमाऊं शब्द का पुराणों से अभिलेखों तक (The word Kumaon is mentioned from puranas to records)
देवाश्श्च तुष्टुवुरदवें नारादाद्या महर्षश्यः। कूर्मरूपधरं दृष्ट्वा साक्षिणं विष्णुव्यमं।। जिस स्थान को वर्तमान में कुमाऊं कहा जाता है मध्य हिमालय के इस भाग के लिए पौराणिक ग्रन्थों में कूर्मांचल नाम का प्रयोग किया गया है. पुराणों में कुमाऊं कुमाऊँ शब्द की उत्पत्ति के बारे में सबसे मान्य तथ्य है कि चम्पावती नदी के पूरब में मौजूद कूर्म पर्वत पर भगवान विष्णु ने दूसरा अवतार कूर्म यानी कछुवे का रूप धारण कर तीन साल तक तपस्या की. एक ही जगह पर खड़े रहने की वजह से कूर्म भगवान के चरणों के चिन्ह पत्थर पर रह गये. कछुए का अवतार धारण किये भगवान विष्णु को देखकर देवतागण आदि मुनीवरों ने उनकी आराधना की. तभी से इस पर्वत का नाम कूर्मांचल हुआ जिसका अर्थ है जहां कूर्म अचल हो गये थे. कूर्मांचल का प्राकृत रूप बिगड़ते-बिगड़ते पहले कुमू हुआ और बाद में यही शब्द कुमाऊँ हो गया. पहले यह नाम चम्पावत और उसके आस-आस के गाँवों को दिया गया. काली नदी के किनारे के चालसी, गुमदेश, गंगोल और उनसे लगती हुई पट्टियाँ ही कूर्मांचल या कुमाऊँ कहलाती थी. एटकिंसन ने चम्पावत के पास फुगर पहाड़ी पर मौजूद घटकू के मन्दिर में विष्ण