पार्थिवपूजा (शिवार्चन) हेतु शिवपीठ

कुमाऊँ में, विशेषकर सावन माह में, पार्थिवपूजा का विधान घर घर में होता है। शिवार्चन के लिए तैयार की जाने वाली पीठ को शिवपीठ कहते हैं। इसकी संरचना गेरू से लीपे हुए स्थल पर चावल के बिस्वार से बिन्दुओं द्वारा की जाती है। दस अथवा बारह की संख्या में इन बिन्दुओं को अनामिका अंगुली से आड़ा-सीधा, एक के ऊपर एक रख कर जोड़ दिया जाता है। पूर्ण होने पर यांत्रिक संरचना की जाती है, जोकि सुरक्षा -कवच है। 

इसी प्रकार, शिव-शक्ति पीठ की संरचना भी होनी आवश्यक है। ताँबे की परात में सफेद वस्त्र में शिव शक्ति पीठ का रेखांकन पिठवा (रोली) से किया जाता है। षष्ठकोण की आकृति में परस्पर दो त्रिभुजाकार रेखाओं से बना मण्डप को शिव शक्ति पीठ कहते हैं। बीच में एक छोटा त्रिभुज रेखांकित कर उसके सभी कोणों को वृत में बन्द कर, आठ कमल की पंखुड़ियों रेखांकित की जाती हैं। पुनः वृत में बनकर सोलह कमल की पंखुड़ियों रेखांकित की जाती है। उसके बाहर चारों दिशाओं में यांत्रिक संरचना की जाती है।

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