कुमाऊं और गढ़वाल का प्रमुख आस्था का केंद्र है देघाट मां भगवती का मंदिर

देघाट मां भगवती मंदिर

अल्मोड़ा समेत पौड़ी,चमोली जिले की सीमा पर स्थित देघाट मां भगवती का मंदिर कुमाऊं समेत गढ़वाल मंडल के लोगों के लिए सदियों से प्रमुख आस्था का केंद्र है। स्याल्दे के मसाणगढि व बिनोद दो नदियों के संगम पर स्थित मां भगवती के मंदिर में हर वर्ष नवरात्रि में दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। लोग दूर-दूर से अटूथ आस्था संजोये मंदिर में मन्नत मांगने पहुंचते हैं। मनोकामना पूर्ण होने के बाद परिवार सहित मंदिर पहुंच कर विशेष पूजा अर्चना करते हैं। चैत्र नवरात्र में यहां सप्तमी और अष्टमी को विशाल मेले का आयोजन होता है। जिसमें अल्मोड़ा समेत पौड़ी,चमोली के लोग भी मंदिर पहुंच कर पूजा अर्चना कर मन्नत मांगते हैं।


करीब सौ साल पुराने मां भगवती मंदिर का अपना अलग ही इतिहास बया करता है।

एक दिन तल्ली चम्याडी निवासी बंगारी परिवार के पूर्वज के सपने में प्रकट होकर मां भगवती ने उसे बताया कि वह पौडी जिले कि किसी स्थान पर हैं। वहां से उन्हें वह देघाट में लेकर स्थापित कर दें। इसके बाद बंगारी परिवार ने क्षेत्र के लोगों से इस बात को लेकर चर्चा की। कुछ अन्य लोगों को लेकर वहां पहुचे जहां देवी ने स्थान बताया था। वहां पहुच कर उन्हें एक बिरान स्थान पर काले रंग के पत्थर पर सिंह वाहिनी खप्पर वाली मां भगवती की ढाई फिट ऊंची मूर्ति मिली। जिस को उठाकर वह अपने साथ ले आए। रास्ते में विश्राम करने के बाद, कोशिश करने पर मूर्ती वहां से हिली ही नहीं, तब क्षेत्र के लोग बाजे गाजे के साथ आए। काफी प्रार्थना करने के बाद मूर्ती साथ लेकर आए और मां भगवती की मूर्ति को दो नदियों के संगम स्थल देघाट पर स्थापित कर दिया।


मां भगवती की मूर्ति स्थापित करने के बाद भरसोली के भृकनी परिवार को मंदिर में पूजा करने की जिम्मेदारी सौंप दी गई। तब से मंदिर में शारदीय एवं चैत्र नवरात्रि में दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। यह प्रथा आज भी निरंतर चली आ रही है। दूर-दूर से लोग मंदिर पहुंच कर मां से मन्नत मांगते हैं। सच्चे मन से मां से प्रार्थना करने पर एक साल के अंदर मां भक्तों की मनोकामना पूर्ण कर देती है।

 शारदीय नवरात्र में वर्षो से मां भगवती के मंदिर में रामलीला का मंचन किया जा रहा है। दशहरे को मंदिर में मेले भी लगता है। जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं।

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