कुमाऊं का यह दुर्भाग्य रहा है कि यहां का लोक साहित्य कभी सहेज कर ही नहीं रखा गया. इतिहास में ऐसी कोई कोशिश दर्ज नहीं है जिसमें यहां की परम्परा और संस्कृति को सहेजने की ठोस कोशिश देखने को मिले. कुमाऊं की जागरों में गाई जाने वाली ‘भारत’ इसका एक सामान्य उदाहरण है.
कुमाऊं में जागरों के साथ भारत का गायन होता. भारत का अर्थ महाभारत से है जिसे स्थानीय भाषा में ‘भारत’ कहा जाता है. पहले पूरे कुमाऊं क्षेत्र में तो 22 दिन की बैसी में भारत (महाभारत) गाई जाती थी. यहां गाई जाने वाली महाभारत यहां के लोक में रची बसी है. यहां कौरव और पांडव के बीच युद्ध के कारण अलग हैं. यहां गाई जाने वाली भारत (महाभारत) में पांडवों और कौरवों से जुड़ी ऐसी घटनाओं का वर्णन होता है जो अन्य किसी भी महाभारत में सुनने को नहीं मिलता.
कुमाऊं में गाई जाने वाली भारत (महाभारत) में कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध का मुख्य कारण यहां किसी राज्य को लेकर नहीं होता. यहां होता कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध का कारण उनके जानवरों के बीच होने वाली लड़ाई है या फिर मधुमक्खी के छत्ते से निकलने वाला शहद. कहीं पांडवों की बिल्ली और कौरवों की मुर्गी के बीच की लड़ाई युद्ध का कारण है.
कुमाऊं में गाई जाने वाली भारत में कुंती खेती करती हैं, द्रौपदी गाय और भैंसों की स्वामिनी के रूप में दिखती हैं. यहां बुग्यालों में चरते पांडव और कौरवों के पशुओं के झुण्ड हैं और दोनों के सांडों के बीच हुई लड़ाई है. कभी मछलियां पकड़ते हुये भी पांडव और कौरवों के बीच की लड़ाई जैसी सैकड़ों घटनायें यहां की ‘भारत’ ‘(महाभारत)’ गाई हैं.
कुमाऊं में गाई जाने वाली भारत में एक जगह कहा गया है कि पार्वती, गांधारी और कुंती तीनों एक ही पिता की संतान हैं. यहां पांडवों से अधिक महत्त्व कुंती को दिया गया है. कुंती को हिमपुत्री कहा गया है. पांडवों के जन्म से संबधित एक कथा कुछ इस तरह कही जाती है:
“कर्ण के
जन्म
के
बाद
कुंती
को
संतान
प्राप्ति
नहीं
होती
है
वह
संतान
की
कामना
कर
नदी
किनारे
एक
घास
की
झोपड़ी
में
रहकर
ऋषियों
का
आह्वान
करती
हैं.
जब
ऋषि
आते
हैं
तो
वह
उनके
लिये
सालि-जमाली
के
चावल
का
भात
और
उड़द
की
दाल
बनाती
है.
ऋषि
उसे
नहीं
खाते
हैं
और
कहते
हैं
हम
हल
व
कुटले
से
बोया,
दंराती
से
काटा,
पैरों
से
रौंदा,
ऊखल
में
कुटा,
सूप
से
पछोरा,
आग
में
पका
अन्न
नहीं
खाते
हैं.
हम
केवल
सूरज
की
रौशनी
में
पका
भोजन
करते
हैं."
"कुंती उनके
लिये
स्वतः
झड़े
अन्न
के
दाने
‘रूवासाल’
मंगवाती
है.
रूवासाल
जंगल
के
सूअरों
के
खुरों
से
खुदी
जमीं
पर
उगा
था,
आकाश
के
पानी
ने
उसे
सींचा
था,
वन
के
चूहों
और
चिड़ियों
ने
उसे
काटा
था,
भालू
ने
अपने
पैरों
से
उसे
रौंदकर
उनके
दाने
गिराये
थे,
गौरया
ने
उसके
छिलके
उतारे
थे
और
सूरज
की
रौशनी
में
वह
पका
था.
इस
प्रकार
कुंती
के
भोजन
से
ऋषि
तृप्त
होकर
संतान
प्राप्ति
का
आशीर्वचन
दे
गये”
“कौरवों और
पांडवों
के
बीच
युद्ध
के
कारण
के
विषय
में
यहां
गाई
जाने
वाली
भारत
(महाभारत) का अर्थ है”
सैली
जैती नामक स्थान पर
कुंती अपने पांच पुत्रों
के साथ रहती थी.
उन्होंने एक बिल्ली पाली
थी जिसका नाम लखिमा था.
लखिमा कौरवों के हस्तिनापुर में
आया जाया करती थी.
एक दिन उसकी वहां
भिड़न्त कौरवों की मुर्गियों से
हो गयी.
खून से
लथपथ लखिमा की बात इतनी
बड़ी की कौरवों और
पांडवों के बीच युद्ध
का कारण बन गयी.
संदर्भ:
राम सिंह और त्रिलोचन
पाण्डेय की पुस्तक और
कुमाऊं में जागरों के
समय गाई जाने वाली
भारत के आधार पर.
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