ऋषिकेश का इतिहास || History of Rishikesh

ऋषिकेश उत्तराखंड के देहरादून जिले में स्थित है। यह समुद्रतल से लगभग 356 मीटर की उचाई पर स्थित है। ऋषिकेश का क्षेत्रफल लगभग 1120 वर्ग किलोमीटर है। ऋषिकेश उत्तराखंड के साथ साथ पुरे देश का प्रमुख तीर्थस्थल है। यहाँ की जलवायु समशीतोष्ण जलवायु है। गर्मियों में ऋषिकेश का तापमान 35 डिग्री से 40 डिग्री के आस आस रहता है। सर्दियों में यहाँ का मौसम 18 डिग्री से 32 डिग्री तक रहता है। वर्षा ऋतू में यहाँ औसतन 60  इंच बरिश होती हैं।



ऋषिकेश का इतिहास ( History of Rishikesh )

ऋषिकेश का पुराना नाम कुब्जाम्रक भी है। कहा जाता है कि यहाँ  रैम्य ऋषि ने तपस्या की थी। उनकी तपस्या से खुश होकर भगवान विष्णु जी ने इस स्थान को हषीकेश के नाम से प्रशिद्ध होने का वरदान दिया था। चूँकि यह वरदान रैम्य, ऋषि को दिया था इसलिए इसका नाम ऋषिकेश हो गया।

स्कंदपुराण के केदारखंड के अनुसार , सतयुग में जब भगवान विष्णु ने आदिशक्ति के सहयोग से मधु कैटव का वध किया था ,तब भगवान् का शरीर ,उन दो पापी दैत्यों के रक्त और चर्बी से अशुद्ध हो गया। ब्रह्मदेव के सुझाव पर ,विष्णु भगवान् ने पृथ्वी पर  स्थित सभी दिव्य तीर्थों का भ्रमण किया। तभी उन्हें इस स्थान पर रैम्य ऋषि उग्र तप करते हुए दिखे। भगवन ऋषि की तपस्या  प्रसन्न हुए , और उन्होंने ऋषिवर से इच्छित वर मांगने को कहा।भगवान् विष्णु को अपने निकट पाकर रैम्य ऋषि का प्र्सनता का ठिकाना नहीं रहा।  रैम्य ऋषि ने आम्र वृक्ष के कुबड़ा जाने के कारण , झुक कर भगवान विष्णु की स्तुति की। और वरदान माँगा की प्रभु आप यहाँ सदा के लिए निवास करें।


भगवान् विष्णु जी ने ऋषि को इच्छित वर देते हुए कह कि हे ऋषिवर आपने , कुब्जक आम्र वृक्ष के निचे झुक कर मेरी स्तुति की है।  इसलिए आज से इसका  एक नाम कुब्जाम्रक होगा। त्रेतायुग में हमारे अंशावतार दशरथ कुमार भरत यहाँ तपस्या करेंगे।  इसलिए कलयुग में मुझे यहाँ भरत के नाम से पूजा जायेगा। वामन पुराण के अनुसार भक्त प्रह्लाद भी भगवान विष्णु जी की स्तुति के लिए कुब्जाम्रक गए थे। कहते हैं भगवान राम और लक्ष्मण जी ने रावण और मेघनाथ के वध के उपरांत ब्रह्महत्या के पाप का प्रयाश्चित करने के लिए ऋषिकेश के पास ऋषि पर्वत पर तप किया था। और ब्रह्महत्या से मुक्त हुए थे। कहा जाता है कि इस स्थान में लक्ष्मण जी ने एक पैर पर खड़े होकर ,निराहार तपस्या की थी। विभिन्न पौराणिक घर्म ग्रंथों से ज्ञात होता है कि ,यहाँ ऋषि मुनि और ज्ञानी लोग यहाँ एकांत में ग्रंथों और पुराणों का मनन और अध्यन ,चिंतन करते थे। कहा जाता कि राजा सहस्त्रार्जुन जब ब्राह्मणो पर अत्याचार करने लगा था , तब सारे ब्राहमणों ने यहीं शरण ली। महाभारतकालीन राजा धृष्टराष्ट्र ,विदुर और पांडव भी इस तीर्थ नगरी से जुड़े हैं। जैन मुनि ऋषभदेव के पुत्र भरत ने ऋषिकेश के पास के राजा नभि की पुत्री से विवाह किया था। कहा जाता है , भगवान बुध भी यहाँ बौध् धर्म के प्रचार के लिए आये थे। ययाति की दशवी पीढ़ी में उत्पन्न महाराज उशीनर ने यहाँ लम्बे समय तक राज किया। इसीलिए ऋषिकेश को उशीनर भी कहते हैं। कत्यूरी वंश के राजाओं ने भी इस प्रदेश पर शाशन किया था। इस क्षेत्र में 11 वी शताब्दी में तोमर और 12 शताब्दी में तोमर सामंतों का  राज था।








Comments

  1. गहन जानकारी साँझा की है। हमें बहुत लगा पढ़ के देवभूमि उत्तराखंड

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