उत्तरकाशी का त्रिशूल- एक आदिकालीन दिव्यास्त्र (Trishul of Uttarkashi - A Primitive Divine Weapon)
"इसी विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण में माँ पार्वती का शक्ति मंदिर है। और इस शक्ति मंदिर में स्थापित है ,एक आदिकालीन दिव्यास्त्र त्रिशूल"
"स्कन्द पुराण के केदार खंड में इस शक्ति मंदिर का वर्णन राजराजेश्वेरी माता शक्ति के नाम पर किया गया है।"
कहा जाता है कि प्राचीन काल में जब देवासुर संग्राम में देवता असुरों से हारने लगे थे तब उन्होंने माँ भगवती को स्मरण किया। तब उन्होंने शक्ति रूप धारण करके असुरों का संहार किया और फिर यहाँ उत्तरकाशी के इस शक्ति स्तम्भ में स्थापित हो गई।
गजेटियर्स लिखे वाले एटिकन्स ने इसकी उचाई 21 फिट बताई है। इस शक्ति स्तम्भ के नीचे तांबे से बना 3 फ़ीट का घेरा है। शक्ति स्तम्भ का बीच का हिस्सा पीतल का बना 12 फिट लम्बा है। इस स्तम्भ पर 6 फिट लम्बा त्रिशूल है। अष्टधातु से निर्मित इस त्रिशूल के आधरभाग में 8 फिट 9 इंच की परिधि में है। एवं ऊपरी भाग केवल 3 फ़ीट की परिधि में है।
इस दिव्य त्रिशूल के दो भाग है। एक भाग है दंड और दूसरा भाग है फलक। दंड ताम्ब्र धातु का बना हुवा 12 फ़ीट लम्बा है। फलक इसका तीन नोक वाला हिस्सा जो लोहे से बना है। इस दिव्यास्त्र का बीच के भाग की गोलाई 22 इंच है। इस त्रिशूल के ऊपर चार स्तम्भों की एक छतरी बनाई गई है। इसके ऊपर कलश स्थापित है।
उत्तरकाशी का यह दिव्य त्रिशूल सम्पूर्ण उत्तराखंड में सबसे पुराना और पुरातात्विक है। इस त्रिशूल पर लिखे अभिलेख भी सबसे पुराने है। इस दिव्यास्त्र पर लिखे श्लोकों से ज्ञात होता है कि प्र्ज्ञानुरागि गणेश्वर नाम के राजा ने विश्वनाथ के उन्नत मंदिर का निर्माण कराया और राजपाट अपने प्रियजनो को सौपकर सुमेरु पर्वत पर तपस्या करने चला गया। उसके बाद उसका प्रतापी पुत्र राजा गुह जो महापराक्रमी और बलशाली था। उसने इस शक्तिस्तम्भ का निर्माण कराया। इसके बाद इसमें एक अभिलेख और लिखा है। जिसमे लिखा है , जब तक भगवान सूर्य अपनी किरणों से अंधकार मिटाते रहें। जब तक ग्रह नक्षत्र दिनचर्या मिटाकर अपने बिम्ब रूपी तिलक गगन में लगाते रहे। तब तक प्रतापी बलशाली राजा गुह की यह कृति स्थिर रहे। अधिरकर ये अभिलेख 6ठी या सातवीं सदी के माने जाते हैं। माना जाता है कि यहाँ पहले तिब्बतियों का अधिकार था और ये रचनाये भी उन्ही की हैं।
बाबा विश्वनाथ मंदिर उत्तरकाशी और शक्ति मंदिर उत्तरकाशी के दर्शन आप गंगोत्री यात्रा से वापस आते समय भी कर सकते हैं या ऋषिकेश से उत्तरकाशी 160 किलोमीटर की सड़क यात्रा पूरी करके पंहुचा जा सकता है। उत्तरकाशी बस स्टेंड से मात्र 300 मीटर दुरी पर बाबा विश्वनाथ मंदिर और शक्ति मंदिर स्थित हैं।
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